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Class 10 hindi part 1,2 all chapters Summary, Q&A and notes
Class 10 hindi part 1+2 all chapters Summary, Q&A and notes // काव्यखंड: सारांश और नोट्स
1. राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा (गुरु नानक)
सारांश:
कवि गुरु नानक के अनुसार, संसार में राम नाम के बिना जन्म लेना व्यर्थ है। बाहरी आडंबरों और कर्मकांडों (जैसे पुस्तक पढ़ना, व्याकरण का बखान करना, दंड-कमंडल धारण करना, जटा-मुकुट लगाना, तीर्थ यात्रा करना) से मुक्ति नहीं मिलती है। कवि यह स्पष्ट करते हैं कि नाम-कीर्तन के बिना सभी प्रयास निष्फल हैं और ईश्वर का नाम जपकर ही व्यक्ति संसार सागर से पार हो सकता है। गुरु के उपदेश (गुरसबद) के बिना सच्ची मुक्ति असंभव है।
नोट्स:
- यह पद धार्मिक आडंबरों की आलोचना करता है।
- बिरथे का अर्थ है 'व्यर्थ ही'।
- गुरसबद का अर्थ है 'गुरु का उपदेश'।
- कविता का केंद्रीय विचार है कि आंतरिक भक्ति और राम नाम ही मोक्ष का मार्ग है।
2. जो नर दुख में दुख नहीं मानै (गुरु नानक)
सारांश:
इस पद में गुरु नानक उस आदर्श मनुष्य के गुणों का वर्णन करते हैं, जो दुख में दुखी नहीं होता है । ऐसा व्यक्ति सुख, स्नेह (प्रेम) और भय (डर) से मुक्त होता है। वह सोना (कंचन) को मिट्टी जैसा मानता है और निंदा या प्रशंसा (निंद्या अस्तुति) से अछूता रहता है । वह लोभ, मोह और अहंकार से रहित होता है । वह व्यक्ति कामना (इच्छाओं) और क्रोध से दूर रहता है और गुरु की कृपा से ऐसी युक्ति (जुगति) को पहचान पाता है।
नोट्स:
- यह पद वैराग्य और आंतरिक स्थिरता पर जोर देता है ।
- कंचन का अर्थ है सोना।
- जो व्यक्ति पानी के साथ पानी की तरह भगवान में लीन हो जाता है, वह सच्चा भक्त है।
3. प्रेम-अयन श्री राधिका और 4. करील के कुंजन ऊपर वारौं (रसखान)
सारांश:
प्रेम-अयन श्री राधिका:
कवि रसखान कहते हैं कि श्री राधिका प्रेम का निवास स्थान (घर/खजाना) हैं (प्रेम-अयन) और श्री कृष्ण (नंदनंद) प्रेम के रंग हैं। कृष्ण की मनमोहक छवि को देखकर कवि अपना दिल लुटा चुके हैं। कवि कहते हैं कि अब उनका मन-मानिक (मन रूपी हीरा) चोर नंद-नंदन (कृष्ण) ने चुरा लिया है और वे बेमन हो गए हैं।
करील के कुंजन ऊपर वारौं:
कवि रसखान ब्रजभूमि के प्रति अपना गहरा प्रेम प्रकट करते हैं। वे कहते हैं कि अगर उन्हें छोटी लाठी और कम्बल मिल जाए, तो वह तीनों लोकों का राज्य भी त्याग देंगे। वे नंद की आठ सिद्धियाँ और नौ निधियाँ के सुख को भी भुला देते हैं, और करोड़ों इंद्रलोक के सुख को ब्रज के करील के कुंजन (झाड़ियों) पर न्योछावर करने को तैयार हैं।
नोट्स:
- यह कविता कृष्ण और राधिका के प्रेम और ब्रजभूमि के प्रति अनन्य भक्ति को दर्शाती है।
- अवधि का अर्थ है 'गृह, खजाना' और वारौं का अर्थ है 'न्योछावर कर दूँ'।
- कवि कृष्ण को 'चोर' कहते हैं क्योंकि उन्होंने कवि का मन चुरा लिया है।
5. अति सूधो सनेह को मारग है और 6. मो अँसुवानिहिं लै बरसौ (घनानंद)
सारांश:
अति सूधो सनेह को मारग है:
कवि घनानंद कहते हैं कि प्रेम का मार्ग अत्यंत सीधा (अति सूधो) है, जहाँ तनिक भी चतुराई (सयानप) या टेढ़ापन (बाँक) नहीं चलता। इस पर केवल सच्चे लोग ही चल सकते हैं, और कपटी या शंका करने वाले इस पर नहीं ठहरते। कवि अपनी प्रिय सुजान से कहते हैं कि यहां केवल एक ही आँख (ईमानदारी) चलती है।
मो अँसुवानिहिं लै बरसौ:
यह वियोग श्रृंगार का पद है, जिसमें कवि बादल (परजन्य) से प्रार्थना करते हैं। कवि कहते हैं कि परोपकार के लिए देह धारण करने वाले बादल, अमृत के समान रस बरसाओ। घनानंद चाहते हैं कि तुम मेरे आँसुओं को लेकर कहीं ऐसे जगह बरसाओ, जहाँ उनकी प्रेयसी सुजान हो।
नोट्स:
- सयानप का अर्थ है 'चतुराई' और बाँक का अर्थ है 'टेढ़ापन'।
- यह कविता प्रेम की पवित्रता और सरलता पर केंद्रित है।
- परजन्य का अर्थ है 'बादल'।
7. स्वदेशी (बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन')
सारांश:
कवि कहते हैं कि आजकल सभी लोग विदेशी वस्तुएँ और रीति-रिवाज अपना रहे हैं, जिससे भारत में भारतीयता (भारतीय होने की भावना) कहीं दिखाई नहीं देती। भारतीय लोग विदेशी भाषा और चाल-चलन अपनाकर स्वयं को विदेशी साहिब बना रहे हैं। कवि दुख व्यक्त करते हैं कि लोग अब हिंदी बोल नहीं सकते और उन्हें हिंदू कहने में भी संकोच होता है। लोग अंग्रेजी चीजों, वस्त्रों और नीतियों के अधीन हो गए हैं। भारतीय लोग अपने देश को विपदा की स्थिति में छोड़कर अंग्रेजों की चाल अपना रहे हैं।
नोट्स:
- यह कविता राष्ट्रप्रेम और स्वदेशी चेतना को दर्शाती है।
- इसमें भारतेंदु युग के दौरान भारतीय समाज में व्याप्त विदेशी प्रभाव की आलोचना है।
- कवि नेताओं को 'डफली' (डफ बजाने वाला/बाजा बजाने वाला) कहते हैं, जो खुशामद करके ब्रिटिश राज में संतुष्ट रहते हैं।
8. भारतमाता (सुमित्रानंदन पंत)
सारांश:
कवि भारतमाता का चित्रण एक ग्रामवासिनी के रूप में करते हैं, जो खेतों में फैली हुई है, जिसका आँचल धूल भरा (मैला) है, और जिसकी गंगा-यमुना अश्रुओं के जल से भरी है। भारतमाता मिट्टी की प्रतिमा की तरह उदास (उदासिनी), स्थिर दृष्टि वाली (दैत्य जड़ित), और अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई है (गुलामी के कारण)। उसके तीस करोड़ पुत्र दुखी, शोषित और नंगे हैं। हालाँकि, कविता के अंत में, कवि दिखाते हैं कि गीता प्रकाशिनी (गीता का ज्ञान देने वाली) भारत माता अब तप-संयम, सत्य और अहिंसा (गाँधीवादी विचारों) के बल पर सफल हुई है, और भय/अंधेरा मिट गया है।
नोट्स:
- कवि भारतमाता को गुलामी से पीड़ित, दीन और असहाय चित्रित करते हैं।
- प्रवासिनी का अर्थ है 'विरोही, बेगानी'।
- कविता भारत के अतीत के गौरव और वर्तमान की दीनता के बीच के विरोधाभास को दर्शाती है, और मुक्ति का संकेत देती है।
9. जनतंत्र का जन्म (रामधारी सिंह 'दिनकर')
सारांश:
कवि उद्घोषणा करते हैं कि सदियों की ठंडी-बुझी राख में अब चिंगारी (सुगबुगा उठी) है। सिंहासन खाली करने का समय आ गया है, क्योंकि अब जनता आ रही है। जनता को अबोध, दर्द सहने वाली, और दुख सहकर भी चुप रहने वाली माना गया था। लेकिन अब, जब क्रोध से व्याकुल होकर जनता भौंहें चढ़ाती है, तो धरती डोल उठती है। कवि कहते हैं कि जनतंत्र (जनता का शासन) जागृत हो गया है। आज राजा का नहीं, बल्कि प्रजा का अभिषेक होगा, और तैंतीस करोड़ लोगों के सिर पर मुकुट रखा जाएगा। देवता अब महलों और मंदिरों में नहीं, बल्कि खेतों और खलिहानों में मिलेंगे।
नोट्स:
- यह कविता लोकतंत्र के उदय और जनता की शक्ति को रेखांकित करती है।
- रथ का घर्घर-नाद समय के परिवर्तन और क्रांति का प्रतीक है।
- तिनकर (अंधकार) और राजदंड (शासक का अधिकार) जैसे शब्दों का प्रयोग राजनीतिक परिवर्तन को दर्शाता है।
10. हिरोशिमा (अज्ञेय)
सारांश:
कवि हिरोशिमा पर हुए परमाणु बम हमले का वर्णन करते हैं। एक दिन अचानक सूरज निकला, लेकिन वह क्षितिज पर नहीं, बल्कि नगर के चौक में था। धूप अंतरिक्ष से नहीं, बल्कि फटी हुई मिट्टी से निकली। इस घटना में मानव की परछाइयाँ दिशाहीन होकर पड़ीं और गायब हो गईं। यह क्षण काल-सूर्य के रथ के पहियों के टूटने जैसा था, जो चारों दिशाओं में बिखर गए। मानव द्वारा बनाए गए इस सूरज ने मानव को भाप बनाकर सोख लिया। पत्थर पर जली हुई मानव की छायाएँ इस विनाशकारी घटना की अंतिम साक्षी हैं।
नोट्स:
- कविता आधुनिक मानव द्वारा उत्पन्न विनाश और विज्ञान के दुरुपयोग को दर्शाती है।
- 'मानव का रचा हुआ सूरज' परमाणु बम का प्रतीक है।
- 'छायाएँ' मानव की तत्काल मृत्यु और घटना के स्थायित्व का प्रमाण हैं।
11. एक वृक्ष की हत्या (कुँवर नारायण)
सारांश:
कवि घर के पास खड़े एक बूढ़े वृक्ष का वर्णन करते हैं, जो हमेशा एक चौकीदार की तरह दरवाजे पर तैनात रहता था। वह वृक्ष एक मजबूत, खुरदरा, मैला-कुचैला और एक राइफल जैसी सूखी डाल वाला था। कवि और वृक्ष के बीच एक संवाद होता था, जहाँ वृक्ष दूर से ललकारता था "कौन?" और कवि जवाब में "दोस्त!" कहते थे। अंत में, कवि वृक्ष की हत्या (काटे जाने) से दुखी होते हैं और अपनी चिंताओं को व्यापक स्तर पर व्यक्त करते हैं। कवि घर को लुटेरों से, शहर को नादिरशाह जैसे क्रूर आक्रमणकारियों (नादिरियों) से, और देश को देश के दुश्मनों से बचाने की बात करते हैं। अंततः, कवि नदियों को नाला होने से, हवा को धुआँ होने से, और सबसे महत्वपूर्ण जंगल को मरुस्थल होने से और मनुष्य को जंगल (बर्बर) हो जाने से बचाने की अपील करते हैं।
नोट्स:
- वृक्ष यहाँ पर्यावरण संरक्षक और मानव सुरक्षा दोनों का प्रतीक है।
- यह कविता पर्यावरण संरक्षण और आधुनिक सभ्यता के खतरों पर प्रकाश डालती है।
12. हमारी नींद (वीरेन डंगवाल)
सारांश:
कवि बताते हैं कि जब हम सो रहे होते हैं (हमारी नींद के दौरान), छोटी-छोटी जैविक घटनाएँ घटती हैं, जैसे कुछ इंच पौधे बढ़ जाते हैं, और एक मक्खी का जीवन चक्र पूरा हो जाता है। लेकिन साथ ही, समाज में बड़ी और भयावह घटनाएँ भी घटती हैं। कई शिशु पैदा होते हैं, और उनमें से कई दंगे, आगजनी और बमबारी में मारे जाते हैं। गरीब बस्तियों में धमाके से देवी जागरण होता है। अत्याचारियों ने दमन के सभी साधन जुटा लिए हैं, लेकिन इसके बावजूद जीवन ज़िद्दी है और आगे बढ़ता जाता है। नींद के बावजूद, अभी भी ऐसे कई लोग हैं जो साफ और मजबूत तरीके से अन्याय का इनकार करना नहीं भूले हैं।
नोट्स:
- कविता मानवीय उदासीनता (नींद) और सामाजिक-राजनीतिक संघर्षों के बीच के विरोधाभास को दर्शाती है।
- गरीब बस्तियों में धमाके से देवी जागरण होना सामाजिक विसंगतियों की ओर इशारा करता है।
13. अक्षर-ज्ञान (अनामिका)
सारांश:
कविता एक बच्चे के अक्षर ज्ञान सीखने के संघर्ष को भावनात्मक रूप से दर्शाती है। बच्चा 'क' को चौखट पर नहीं जमा पाता है, वह कबूतर की तरह फुरक कर उड़ जाता है। 'ख' खरगोश की बेचैनी में होता है, और 'ग' गमले-सा टूटता हुआ गिर जाता है। बच्चा 'ड' अक्षर लिखने में विशेष रूप से संघर्ष करता है। अंत में, जब वह 'ड' के बगल वाले बिंदु (अक्षर 'ड़' का प्रतीक) को देखता है, तो उसे लगता है कि 'ड' माँ है और बिंदु उसकी गोदी में बैठा 'बेटा' है। लिखते समय बच्चे की आँखों में आँसू आ जाते हैं, जो उसकी पहली विफलता और सृष्टि के विकास-कथा का पहला अक्षर (प्रथमाक्षर) हो सकता है।
नोट्स:
- कविता सीखने की प्रक्रिया में बच्चे की कठिनाई, प्रयास और भावनात्मक जुड़ाव को व्यक्त करती है।
- 'ड' और उसके बगल का बिंदु माँ और बेटे के रिश्ते का प्रतीक है, जो सीखने की प्रक्रिया में मानवीय संबंध को दर्शाता है।
14. लौटकर आऊंगा फिर (जीवनानंद दास)
सारांश:
कवि बंगाल की मातृभूमि से गहरा प्रेम व्यक्त करते हैं। कवि कहते हैं कि मरने के बाद वह एक दिन बंगाल में लौटकर आएँगे, शायद मनुष्य बनकर नहीं। वह अबाबिल (एक काली चिड़िया) या कौआ (कौवा) बनकर लौट सकते हैं, जो धान की फसल पर बैठता है। वह हंस बनकर किसी किशोरी के पैरों को छूते हुए आ सकते हैं। कवि दिन भर पानी में तैरते हुए रहेंगे, जहाँ घास की गंध भरी होगी। वह उल्लू या कपास के पेड़ पर बोलती गिलहरी, या धान कूटते किशोरों के बीच मुट्ठी भर चावल बनकर भी लौट सकते हैं।
नोट्स:
- कविता मातृभूमि के प्रति कवि के अटूट प्रेम और पुनर्जन्म में विश्वास को दर्शाती है।
- कवि बंगाल के प्राकृतिक तत्वों (नदी, धान, घास, रुप्सा नदी) के साथ एकाकार होना चाहते हैं।
- अबाबिल एक प्रसिद्ध छोटी काली चिड़िया है जो उजाड़ मकानों में रहती है।
15. मेरे बिना तुम प्रभु (रेनर मारिया रिल्के)
सारांश:
इस कविता में कवि भक्त और भगवान के बीच अन्योन्याश्रय संबंध को दर्शाते हैं। कवि (स्वयं को भक्त/मानव मानते हुए) प्रभु से पूछते हैं कि जब मेरा अस्तित्व नहीं रहेगा, तो तुम क्या करोगे?। कवि खुद को तुम्हारा जलपात्र और तुम्हारी मदिरा बताते हैं; यदि वे टूट गए या स्वादहीन हो गए, तो प्रभु को अर्थ कहाँ मिलेगा?। कवि स्वयं को ईश्वर की वृत्ति (प्रवृत्ति, कर्म-स्थली) और चरणपादुका (पादुका) भी बताते हैं। कवि कहते हैं कि मेरे बिना तुम गृहहीन और स्वागत-विहीन हो जाओगे, और तुम्हारा शानदार लबादा (पोशाक) गिर जाएगा। प्रभु को वह सुख और आश्रय नहीं मिलेगा, जो उन्हें भक्त से मिलता था।
नोट्स:
- यह कविता मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और भगवान तथा मनुष्य के बीच के जटिल संबंध को स्पष्ट करती है।
- वृत्ति का अर्थ है 'प्रवृत्ति, कर्म-स्वभाव' और पादुका का अर्थ है 'चप्पल, जूते'।
- कवि की दृष्टि से, भक्त का अस्तित्व ही प्रभु के अस्तित्व को सार्थकता देता है।
1. गद्य खंड (Prose Section)
पाठ 1: श्रम विभाजन और जाति प्रथा
संक्षेपण (Summary)
यह पाठ आधुनिक सभ्य समाज की आवश्यकता के रूप में श्रम विभाजन की चर्चा करता है और जाति प्रथा के साथ उसके विरोधाभास को दर्शाता है। लेखक (हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा उद्धृत) के अनुसार, विडंबना यह है कि जातिवाद के पोषकों की कमी नहीं है। जाति प्रथा कार्य-कुशलता के लिए श्रम विभाजन का आवश्यक मानती है, लेकिन यह श्रमिकों को विभाजित करती है और उनमें ऊँच-नीच का भाव पैदा करती है। यह एक अस्वाभाविक विभाजन है क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है। जाति प्रथा व्यक्ति को जीवन भर के लिए एक ही पेशे से बाँध देती है। यह विपरीत परिस्थितियों में पेशा बदलने की अनुमति भी नहीं देती, जिससे भारत में बेरोजगारी का प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण बनता है। जाति प्रथा मनुष्य के स्वभावगत प्रेरणा और आत्म-शक्ति को दबाकर निष्क्रिय बना देती है। एक आदर्श समाज में स्वतंत्रता, समता और भ्रातृत्व (भाईचारा) का होना आवश्यक है। लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं है, बल्कि सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति और सामाजिक अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है।
अध्याय में निहित प्रश्नों के समाधान
- लेखक किस विडंबना की बात करते हैं? विडंबना का स्वरूप क्या है?लेखक विडंबना की बात करते हैं कि इस युग में भी 'जातिवाद' के पोषकों की कमी नहीं है। विडंबना का स्वरूप यह है कि जाति प्रथा श्रम विभाजन का दूसरा रूप है, जो श्रमिकों को अस्वाभाविक रूप से विभाजित करती है और उनमें ऊँच-नीच का भाव पैदा करती है, जो किसी भी सभ्य समाज में नहीं पाया जाता।
- जातिवाद के पोषक उसके पक्ष में क्या तर्क देते हैं?जातिवाद के पोषक तर्क देते हैं कि आधुनिक सभ्य समाज 'कार्य-कुशलता' के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है।
- जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्कों पर लेखक की प्रमुख आपत्तियाँ क्या हैं?लेखक की आपत्तियाँ हैं: 1. जाति प्रथा श्रम विभाजन का अस्वाभाविक रूप है क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है । 2. यह व्यक्ति को जीवन भर के लिए एक ही पेशे से बाँध देती है। 3. यह व्यक्ति को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता नहीं देती है, जिससे भुखमरी या मजबूरी में मरने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता।
- जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कही जा सकती?यह स्वाभाविक रूप नहीं कही जा सकती क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है और व्यक्ति की निजी क्षमता के विचार के बिना, माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार, पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से ही पेशा निर्धारित कर देती है।
- जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई है?जाति प्रथा मनुष्य को उसका पेशा बदलने की स्वतंत्रता नहीं देती। विपरीत परिस्थितियों में जब मनुष्य को अपना पेशा बदलना आवश्यक हो जाता है, तब हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को पैतृक पेशा न होने पर भी ऐसा करने की अनुमति नहीं देती, जिससे यह बेरोजगारी का प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
- लेखक आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या किसे मानते हैं और क्यों?लेखक आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या यह मानते हैं कि जाति प्रथा के कारण मनुष्य अपनी स्वभावगत प्रेरणा और आत्म-शक्ति को दबाकर निर्धारित और अरुचिकर नियमों में जकड़कर निष्क्रिय बना रहता है।
- लेखक ने पाठ में किन प्रमुख पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक रूप में दिखाया है?लेखक ने दिखाया है कि जाति प्रथा श्रम-विभाजन की दृष्टि से गंभीर दोषों से युक्त है, यह मनुष्य की व्यक्तिगत भावना और रुचि का कोई महत्व नहीं रखती, यह पेशा परिवर्तन की अनुमति नहीं देती (जिससे बेरोजगारी बढ़ती है), और यह मनुष्य की स्वभावगत प्रेरणा व आत्म-शक्ति को दबा देती है।
- सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक ने किन विशेषताओं को आवश्यक माना है?सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक ने आदर्श समाज को स्वतंत्रता, समता, भ्रातृत्व (भाईचारा) पर आधारित माना है। लोकतंत्र मूलतः सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति है, जिसमें सामाजिक संपर्क के अनेक साधन, अवसर की उपलब्धता और साधियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव आवश्यक है।
संपूर्ण अध्याय का नोट्स
क. मुख्य विचार (Main Themes):
- जातिवाद की विडंबना: जाति प्रथा कार्य कुशलता के नाम पर श्रम का अस्वाभाविक विभाजन करती है।
- पेशा निर्धारण: यह जन्म से ही पेशा निर्धारित कर देती है और मनुष्य को पेशा बदलने की अनुमति नहीं देती।
- बेरोजगारी: पेशा बदलने की स्वतंत्रता न होना भारत में बेरोजगारी का प्रमुख कारण है।
- मानसिक क्षति: जाति प्रथा मनुष्य की व्यक्तिगत भावना, आत्म-शक्ति और स्वाभाविक प्रेरणा को दबा देती है।
- आदर्श समाज/लोकतंत्र: आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता, और भ्रातृत्व पर आधारित होना चाहिए। लोकतंत्र केवल शासन पद्धति नहीं, बल्कि सामूहिक जीवनचर्या की रीति है जिसमें सभी को सामाजिक संपर्क और रक्षा के अवसर प्राप्त हों।
ख. शब्द निधि (Glossary):
- विडंबना: उपहास।
- पोषक: समर्थक, पालक, पालनेवाला।
- पूर्वनिर्धारण: पहले ही तय कर देना।
- अकस्मात: अचानक ।
- अप्रत्याशित: जिसकी पहले से आशा न हो (उपलब्ध नहीं)।
- स्वेच्छा: अपनी इच्छा ।
- भ्रातृत्व: भाईचारा, बंधुत्व।
पाठ 2: विष के दाँत
संक्षेपण (Summary)
यह कहानी सेन साहब के परिवार की है, जो एक नई, काली, चमकती हुई कार (सात हजार में खरीदी गई) पर गर्व करते हैं। सेन साहब के पाँचों लड़कियाँ तहजीब और तमीज की जीती-जागती मूरत हैं। लेकिन उनका बेटा खोखा (काशू) अपवाद है, जिसे वे इंजीनियर बनाना चाहते हैं। एक दिन खोखा कार के पास छेड़छाड़ करते हुए उसकी हेडलाइट (या काँच) तोड़ देता है। सेन साहब इस पर गुस्सा नहीं होते, बल्कि कहते हैं कि खोखा इंजीनियर बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। सेन साहब का ड्राइवर गिरधर लाल भी वहीं काम करता है, जिसका बेटा मदन है। मदन को कार छूने पर फटकारे जाने के बाद एक दिन वह खोखा से झगड़ पड़ता है और उसे मुक्का मारकर दो दाँत तोड़ देता है। मदन के पिता गिरधर को सेन साहब द्वारा डाँटा जाता है और अंत में मदन को गिरधर द्वारा बुरी तरह पीटा जाता है। अगले दिन मदन घर नहीं लौटता। अंत में, गिरधर मदन को हृदय से लगा लेता है, और लेखक दिखाता है कि महल और झोपड़ी वालों की लड़ाई में मदन और काशू का झगड़ा एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।
अध्याय में निहित प्रश्नों के समाधान
- कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।शीर्षक 'विष के दाँत' खोखा (काशू) की दुर्दान्त और हिंसक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, जिसे सेन साहब की अंधी महत्वकांक्षा और सामाजिक विषमता ने जन्म दिया है। मदन द्वारा खोखा के दाँत तोड़ना सामाजिक शोषण के प्रति विद्रोह का प्रतीक है।
- सेन साहब के परिवार में बच्चों के पालन-पोषण में किए जा रहे लिंग आधारित भेद-भाव का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।सेन साहब की पाँचों लड़कियाँ अत्यंत सुशील और संस्कारी हैं, जिन्हें यह सिखाया गया है कि क्या नहीं करना है। वहीं, उनके बेटे खोखा को हर तरह की छूट दी गई है। सेन साहब को लड़कों को यह बात बताने में गर्व है कि वे लड़कियाँ हैं और उन्हें पढ़ने-लिखने के बाद कुछ काम करना है। यह स्पष्ट रूप से लिंग-भेदभाव दर्शाता है, जहाँ लड़कियों के लिए कठोर नियम हैं और लड़के के लिए स्वच्छंदता है।
- खोखा किन मामलों में अपवाद था?खोखा तहजीब और तमीज के मामले में अपवाद था। वह नियमों का पालन नहीं करता था। वह लड़कियों के विपरीत था, जिन्हें हर काम के लिए सिखाया गया था, जबकि खोखा को कुछ भी नहीं सिखाया गया था।
- सेन दंपति खोखा में कैसी संभावनाएँ देखते थे और उन संभावनाओं के लिए उन्होंने उसकी कैसी शिक्षा तय की थी?सेन दंपति खोखा को इंजीनियर बनाने की संभावनाएँ देखते थे। उन्होंने उसकी शिक्षा के लिए उसे बढ़ई के साथ दो-एक घंटे के लिए भेजकर ठोक-पीट करने की ट्रेनिंग तय की थी।
- काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण क्या था? इस प्रसंग द्वारा लेखक क्या दिखाना चाहता है?झगड़े का कारण यह था कि खोखा (काशू) लट्टू खेलने के लिए मदन की टोली में शामिल होना चाहता था, लेकिन लड़कों ने उसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह अमीरों का बच्चा था और लड़कियों को नजंरअंदाज करता था। जब खोखा ने मदन पर हमला किया तो मदन ने प्रतिरोध किया। लेखक इस प्रसंग द्वारा झोपड़ी वालों की महल वालों के प्रति स्वाभाविक विद्रोह को दर्शाना चाहता है।
- 'महल और झोपड़ी वालों की लड़ाई में अक्सर महल वाले ही जीतते हैं, पर उसी हालत में जब दूसरे झोपड़ी वाले उनकी मदद अपने ही खिलाफ करते हैं।' लेखक के इस कथन को कहानी से एक उदाहरण देकर पुष्ट कीजिए।इसका उदाहरण मदन के पिता गिरधर का व्यवहार है। गिरधर एक झोपड़ी वाला है, लेकिन सेन साहब (महल वाला) के दबाव में वह अपने ही बेटे मदन को बुरी तरह पीटता है।
- आपकी दृष्टि से कहानी का नायक कौन है? तर्कपूर्ण उत्तर दें।स्रोत के आधार पर, कहानी का नायक मदन है। हालाँकि खोखा केंद्र बिंदु है, मदन के कार्य (विरोध और खोखा के दाँत तोड़ना) इस कहानी में सामाजिक असमानता और प्रतिरोध की मुख्य घटना को जन्म देते हैं। उसका संघर्ष वर्ग-संघर्ष का प्रतीक है, जिसे लेखक ने उजागर किया है।
संपूर्ण अध्याय का नोट्स
क. मुख्य विचार (Main Themes):
- वर्ग भेद: कहानी सेन साहब के अमीर वर्ग और गिरधर/मदन के गरीब वर्ग के बीच के गहरे सामाजिक और आर्थिक अंतर को दर्शाती है।
- लिंग भेद और परवरिश: लड़कियों के लिए कठोर नियम और लड़के (खोखा) के लिए पूर्ण स्वतंत्रता।
- अंध महत्वाकांक्षा: सेन साहब खोखा को इंजीनियर बनाने की अंधी महत्वाकांक्षा रखते हैं।
- विद्रोह और प्रतिरोध: मदन का खोखा को मारना शोषित वर्ग के प्रतिरोध का प्रतीक है।
- शीर्षक का महत्व: 'विष के दाँत' खोखा की दुर्दान्तता और सेन साहब की सामाजिक विषमता को दर्शाता है।
ख. प्रमुख पात्र:
- सेन साहब: अमीर, कार के प्रति गर्वित, खोखा के प्रति अंधी महत्वाकांक्षा।
- खोखा (काशू): बिगड़ैल बेटा, जिसे इंजीनियर बनाने की योजना है।
- मदन: गिरधर का बेटा, जो आत्मसम्मान के लिए लड़ता है।
- गिरधर: सेन साहब का ड्राइवर, जो वर्गगत शोषण का शिकार है।
ग. शब्द निधि (Glossary):
- बरसाती: पोर्टिको।
- नाज: गर्व, गुमान।
- तमीज: सभ्यता।
- शोफर: ड्राइवर।
- खटखाट: फटकारना, चोट लगना।
- खोखा-खोखी: बच्चा-बच्ची (बंगला)।
- आविर्भाव: उत्पत्ति, प्रकट होना।
- दुर्दंत: लाड़-प्यार में बिगड़ा हुआ।
पाठ 3: भारत से हम क्या सीखें
संक्षेपण (Summary)
यह पाठ फ्रेडरिक मैक्स मूलर का भाषण है, जो उन्होंने युवा अंग्रेज अधिकारियों को भारत के महत्व को समझाने के लिए दिया था। मैक्स मूलर ने भारत को सर्वाधिक सम्पदा और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण देश बताया। यह वह भूमि है जहाँ ज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियाँ हासिल की गई हैं। भारत में पुराने साहित्य, धर्म, कानून, दर्शन और पुरातत्व के अध्ययन के भरपूर अवसर हैं। लेखक ने भारत के ग्रामीण ग्राम पंचायतों को राजनीति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने संस्कृत की प्राचीनता और उसकी भाषा वैज्ञानिक महत्व पर जोर दिया। संस्कृत का अध्ययन भारतीय भाषाओं और यूरोपीय भाषाओं के मूल स्रोत को समझने में मदद करता है। लेखक वारेन हेस्टिंग्स से संबंधित एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना का भी उल्लेख करते हैं, जिसने भारत के प्रति यूरोपीय लोगों की दूरदर्शिता की कमी को उजागर किया। अंत में, लेखक भारत को एक विशाल और महत्वपूर्ण क्षेत्र बताते हैं, जो सर विलियम जोन्स जैसे समर्पित खोजकर्ताओं की प्रतीक्षा कर रहा है।
अध्याय में निहित प्रश्नों के समाधान
- समस्त भूमंडल में सर्वाधिक सम्पदा और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण देश भारत है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि भारत वह देश है जहाँ मानव मस्तिष्क की उत्कृष्टतम उपलब्धियाँ (जैसे कि जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर विचार) प्राप्त की गई हैं। यह ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, पुरातत्व, धर्म और दर्शन के क्षेत्र में अद्वितीय है। - लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन कहाँ हो सकते हैं और क्यों?
लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में हो सकते हैं। क्योंकि भारत का अधिकतर ध्यान सच्चे अर्थों में यहाँ के नागरिक-ग्रामवासियों की ओर हो रहा है। - लेखक ने वारेन हेस्टिंग्स से संबंधित किस दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का हवाला दिया है और क्यों?लेखक ने 172 दारिस (सोने के सिक्कों) से भरी एक घड़े वाली घटना का हवाला दिया है, जो वारेन हेस्टिंग्स को मिली थी। उन्होंने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशकों के पास भेजा, लेकिन उन्होंने इस उपहार को तुच्छ समझा और गला दिया। यह दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना इसलिए है क्योंकि यह प्राचीन इतिहास की धरोहर के प्रति कंपनी के निदेशकों की अज्ञानता और उपेक्षा को दर्शाती है।
- लेखक ने नीति-कथाओं के क्षेत्र में किस तरह भारतीय अध्ययन को रेखांकित किया है?लेखक ने बताया है कि नीति-कथाओं के क्षेत्र में भारत के कारण ही प्रचलित दंतकथाओं का उद्भव यूरोप तक पहुँचा।
- भारत के ग्राम पंचायतों को किस अर्थ में और किन्हें लेखक ने महत्वपूर्ण बतलाया है?लेखक ने भारत के प्राचीन स्थानीय शासन प्रणाली को महत्वपूर्ण बतलाया है, जिसकी झलक ग्राम पंचायतों के रूप में आज भी भारत में मिलती है।
- मैक्स मूलर ने संस्कृत की कौन सी विशेषताएँ बताई हैं और क्यों?मैक्स मूलर ने संस्कृत की विशेषता बताई कि यह अन्य भारतीय भाषाओं के अध्ययन के साथ-साथ यूरोपीय भाषाओं के मूल स्रोत से संबंधित है। संस्कृत का अध्ययन हमें प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक के इतिहास और मानव जाति के विकास को समझने में सहायक है।
पाठ 8: आविन्यों (Avinyo)
संक्षेपण (Summary)
यह पाठ लेखक की यात्रा पर आधारित है, जो दक्षिणी फ्रांस में रोन नदी के किनारे बसे एक पुराने शहर आविन्यों (Avinyo) के बारे में है। यह शहर कभी पोप की गतिविधियों का केंद्र था। लेखक वहाँ 'ला शत्रूज़' (La Chartreuse), जो एक पूर्व मठ था और अब कला का केंद्र है, में रुके थे। लेखक ने वहाँ कुल उन्नीस दिनों में पैंतीस कविताएँ और सवाईस गद्य रचनाएँ कीं। लेखक ने इस मठ को 'मौन का स्थापत्य' कहा है। मठ में एक बड़ा कमरा था जहाँ रचनात्मक कार्य होते थे। लेखक ने अपनी रचनाओं के साथ ला शत्रूज़ को गहरी कृतज्ञता व्यक्त की है। पाठ में दो कविताएँ भी शामिल हैं: 'प्रतीक्षा करते हैं पत्थर' और 'नदी के किनारे भी नदी है' । पहली कविता पत्थर के मानवीकरण से संबंधित है जो किसी अज्ञात देवता या काल की प्रतीक्षा करते हैं। दूसरी कविता नदी की निरंतरता और उसके किनारों पर खड़े रहने वालों की तटस्थता (जो संभव नहीं) को दर्शाती है।
अध्याय में निहित प्रश्नों के समाधान
- आविन्यों कहाँ है और वह कहाँ अवस्थित है?आविन्यों (Avinyo) दक्षिणी फ्रांस में रोन नदी के किनारे स्थित एक पुराना शहर है।
- लेखक आविन्यों क्या साथ लेकर गए थे और वहाँ कितने दिनों तक रहे? लेखक की उपलब्धि क्या रही?लेखक अपने साथ कुछ पुस्तकें और कुछ संगीत की टेप लेकर गए थे। वे वहाँ उन्नीस दिनों तक रहे। उनकी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने पैंतीस कविताएँ और सवाईस गद्य रचनाएँ कीं।
- ला शत्रूज़ का अंतरंग विवरण प्रस्तुत करते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि लेखक ने उसको 'मौन का स्थापत्य' क्यों कहा है?ला शत्रूज़ एक पूर्व मठ था, जहाँ अब कला केंद्र है। लेखक वहाँ रहते थे, यह स्थान शांत, निर्जन और बहुत साहित्यिक-रचनात्मक था। लेखक ने इसे 'मौन का स्थापत्य' कहा है क्योंकि यह स्थान शोरगुल से दूर था और यहाँ चुप्पी और शांति में रचनात्मकता का जन्म होता था।
- 'प्रतीक्षा करते हैं पत्थर' शीर्षक कविता में कवि क्यों और कैसे पत्थर का मानवीकरण करता है?कवि पत्थर का मानवीकरण करता है क्योंकि पत्थर धीरज से प्रतीक्षा करते हैं, वे रेषा-रेषा, शिरा-शिरा हिलते हुए प्रतीक्षारत रहते हैं [122]। वे 'बिना शब्द कविता लिखते हैं' [122]। कवि उन्हें मनुष्य की तरह भावनाओं से भरा हुआ दिखाते हैं, जो किसी प्राचीन धुन को दोहराते हुए बाट जोहते हैं।
- नदी के तट पर बैठे हुए लेखक को क्या अनुभव होता है?नदी के तट पर बैठकर लेखक को लगता है कि जल स्थिर है और तट बह रहा है। नदी निरंतर गतिशील है, और कवि सोचता है कि जीवन, ध्वनियाँ, छवियाँ और स्मृतियाँ नदी के जल में मिलकर तटस्थ हो जाती हैं।
- नदी और कविता में क्या समानता है?नदी और कविता दोनों में निरंतरता और अविच्छिन्नता की समानता है। जैसे नदी का जल कभी रिक्त नहीं होता, वैसे ही कविता भी कभी रिक्त नहीं होती।
संपूर्ण अध्याय का नोट्स
क. मुख्य विचार (Main Themes):
- आविन्यों: दक्षिणी फ्रांस में रोन नदी के किनारे स्थित, कला का केंद्र, पूर्व में पोप की गतिविधियों का केंद्र।
- ला शत्रूज़ (La Chartreuse): मठ, कला केंद्र, मौन का स्थापत्य, जहाँ रहकर लेखक ने रचना की ।
- पत्थर की प्रतीक्षा: पत्थर धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हुए मानवीकृत हैं, जो समय और इतिहास के साक्षी हैं।
- नदी और निरंतरता: नदी जीवन की तरह गतिशील, सब कुछ को अपने में समाहित करती है। नदी की चमक निरंतरता को दर्शाती है।
ख. शब्द निधि (Glossary):
- महाकाव्यात्मक: महाकाव्य की तरह व्यापक और गहरा।
- रेन्ग्सथल: जहाँ नाटक मंचित हो।
- जीर्णोद्धार: पुराने को नया करना।
- चौवन्नी: प्रकोष्ठ, कमरे।
- दस्तवेज़: ऐसे कागजात जिनमें किसी वस्तु का सारा विवरण हो।
- कवियत्री: कवि का कृतज्ञतापूर्ण प्रणाम।
- ब्यावान: निर्जन, सुनसान।
- अभिव्यक्ति: अत्यंत प्रभावित होना ।
पाठ 9: मछली
संक्षेपण (Summary)
यह कहानी विनोद कुमार शुक्ल द्वारा लिखित है, जो एक छोटे मध्यमवर्गीय परिवार के सदस्यों के आपसी संबंध और उनकी भावनाओं को दर्शाती है। narrator (लेखक का भाई) और संतु बाजार से तीन मछली खरीदकर घर लाते हैं। संतु की इच्छा थी कि वह तीनों मछलियों को रखेगा और उनके साथ खेलेगा, और एक मछली पिताजी से माँगेगा ताकि वह बड़ी हो। रास्ते में बारिश शुरू हो जाती है। संतु मछली को बचाने के लिए कमज़ को दबाकर भागता है। घर आकर, मछलियाँ बाल्टी में डाल दी जाती हैं। दीदी मछली को छूती है, जिसे देखकर संतु गुस्सा होता है। दीदी मछली को देखने जाती है और चुपके से बाल्टी में से एक मछली निकालकर कुएँ में डाल देती है। संतु मछली को लेकर भागने की कोशिश करता है, क्योंकि वह दीदी के लिए मछली बचाना चाहता है। जब मछली काटने की बारी आती है, तो संतु मछली बचाने के लिए भागा। मछली काटने वाला भग्गू जब मछली को काट रहा होता है, तब अंदर पिताजी की तेज आवाज़ आती है। दीदी अंततः कमरे में सिसकियाँ लेकर रोती हुई पाई जाती है, संभवतः मछली या पिताजी के गुस्से के कारण।
अध्याय में निहित प्रश्नों के समाधान
- झोले में मछलियाँ लेकर बच्चे संकुचे हुए पतली गली में क्यों घुस गए?बच्चे संकुचे हुए पतली गली में घुस गए क्योंकि वह गली बाजार से नजदीक पड़ती थी और दूसरी रास्ते में भीड़ थी।
- मछलियों को लेकर बच्चों की अभिलाषा क्या थी?बच्चों की अभिलाषा थी कि वे मछली को घर लाकर बाल्टी में डाल दें, और संतु चाहता था कि वह तीनों मछलियों को रखेगा और एक मछली पिताजी से माँगेगा ताकि वह बड़ी हो जाए।
- मछली को छूते हुए संतु क्यों हिचक रहा था?मछली को छूते हुए संतु हिचक रहा था क्योंकि वह डरता था कि मछली बिना पानी के झोले में मर न जाए।
- मछली और दीदी में क्या समानता दिखाई पड़ी? स्पष्ट करें।मछली और दीदी दोनों ही संयम और संरक्षण की आवश्यकता को दर्शाते हैं। दीदी ने मछली को बाल्टी से निकालकर कुएँ में डाल दिया था, जैसे वह उसे बचाना चाहती हो। दोनों ही पात्र अपने परिवेश में दबे हुए और लाचार महसूस होते हैं, और दोनों ही पिताजी के क्रोध से भयभीत होते हैं।
- संतु क्यों उदास हो गया?संतु उदास हो गया जब उसने देखा कि मछली को काटा जाएगा और वह उसे बचा नहीं पाया।
- पिताजी किससे नाराज थे और क्यों?पिताजी संभवतः दीदी से नाराज थे। जब भग्गू मछली काट रहा था तो अंदर से पिताजी की ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ आई, और बाद में दीदी रोती हुई पाई गई। संभवतः दीदी के किसी काम (या मछली को कुएँ में डालने के बारे में) पिताजी नाराज थे।
संपूर्ण अध्याय का नोट्स
क. मुख्य विचार (Main Themes):
- मध्यमवर्गीय जीवन: कहानी एक साधारण परिवार के जीवन, डर और भावनाओं को दर्शाती है।
- बच्चों की मासूमियत: संतु और लेखक का मछली को लेकर उत्साह और उसे बचाने की इच्छा ।
- डर और विद्रोह: संतु मछली को बचाने के लिए भागता है। दीदी की सिसकियाँ भी विद्रोह और डर का संकेत हो सकती हैं।
- भावनात्मक संबंध: दीदी का मछली को कुएँ में डालना मछली के प्रति दया या संतु की इच्छा पूरी करने की कोशिश हो सकती है।
ख. शब्द निधि (Glossary):
- टोटला: अनुमान किया, खा लिया।
- उलसुकता: कुतूहल, जानने की इच्छा ।
- पाट: वह लकड़ी जिस पर मछली काटकर रखी जाती है।
- आहट: ध्वनि, आवाज, संकेत ।
- टरपना: तड़पना।
- सिसकियाँ: रूदन की अस्पष्ट ध्वनि, धीमे-धीमे रोना।
पाठ 10: नौबतखाने में इबादत
संक्षेपण (Summary)
यह पाठ उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ (कमरुद्दीन) के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने शहनाई को प्रतिष्ठित किया। उनका जन्म डुमराँव, बिहार में हुआ था। उनका बचपन काशी में बीता, जहाँ वे बालाजी मंदिर के नौबतखाने में शहनाई बजाते थे। उनके दादा, पिता और मामा भी शहनाई वादक थे। बिस्मिल्ला खाँ का संगीत के प्रति अटूट प्रेम था। वे मुहर्रम के आठवें दिन शहनाई नहीं बजाते थे, बल्कि शोक मनाते थे। वे काशी की संस्कृति को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते थे, जहाँ संगीत, साहित्य और गंगा का प्रवाह है । उनके लिए सुर ही सब कुछ था। वे मानते थे कि सुर फटा न हो और लुंगी फटी हो, लेकिन सुर सच्चा हो। काशी में गंगा, बालाजी मंदिर और बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई एक-दूसरे के पूरक थे। काशी और शहनाई उनसे अलग नहीं किए जा सकते थे।
अध्याय में निहित प्रश्नों के समाधान
- डुमराँव की महत्ता किस कारण से है?डुमराँव की महत्ता इस कारण से है कि यहाँ शहनाई बजाने के लिए प्रयोग होने वाली रीड (नरकट/रीड) पाई जाती है। शहनाई के लिए रोड का प्रयोग होता है और यह रोड डुमराँव के आस-पास की नदियों के कछारों में पाई जाती है।
- 'शहनाई' शब्द की व्युत्पत्ति किस प्रकार हुई है?'शहनाई' शब्द की व्युत्पत्ति का स्रोत में स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन वैदिक इतिहास में इसे 'सुषिर वाद्यों' (फूँक कर बजाए जाने वाले वाद्य) में गिना जाता है।
- मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव का परिचय पाठ के आधार पर दें।बिस्मिल्ला खाँ मुहर्रम से जुड़े हुए थे। मुहर्रम के दिनों में वे नहाते भी नहीं थे और आठवें दिन वे केवल शोक मनाते थे और शहनाई नहीं बजाते थे। वे मुहर्रम को हज़रत इमाम हुसैन और उनके परिवार के प्रति अज़ादारी (शोक) का उत्सव मानते थे।
- 'संगीततम कचौड़ी' का आपका क्या अर्थ समझते हैं?स्रोत में 'काशी संस्कृति की पाठशाला है' का उल्लेख है। 'संगीततम कचौड़ी' संभवतः काशी के उस परिवेश को दर्शाता है जहाँ संगीत, संस्कृति और रोज़मर्रा के जीवन (जैसे कचौड़ी) का सहज मिश्रण हो चुका है।
- बिस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तो क्या करते थे? इससे हमें क्या सीख मिलती है?जब बिस्मिल्ला खाँ काशी से बाहर होते थे, तब भी वह काशी को बहुत याद करते थे। वे गंगा, बालाजी मंदिर और विश्वनाथ मंदिर की ओर मुख करके शहनाई बजाते थे। इससे हमें सीख मिलती है कि हमें अपनी जन्मभूमि, संस्कृति और जड़ों से गहरा प्रेम रखना चाहिए।
- 'बिस्मिल्ला खाँ का मतलब - बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई।' एक कलाकार के रूप में बिस्मिल्ला खाँ का परिचय पाठ के आधार पर दें।बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के पर्याय बन गए थे। वे संगीत के प्रति अत्यधिक समर्पित थे, और उन्हें सुर की शुद्धता सबसे प्रिय थी। वे भारत रत्न से सम्मानित थे। वे काशी की मिली-जुली संस्कृति (गंगा-जमुनी तहज़ीब) के प्रतीक थे, जहाँ वे मंदिर की इबादत को अपनी उपासना मानते थे।
संपूर्ण अध्याय का नोट्स
क. मुख्य विचार (Main Themes):
- शहनाई के सम्राट: उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ (कमरुद्दीन), महान शहनाई वादक।
- काशी से अटूट संबंध: बालाजी मंदिर, गंगा, विश्वनाथ मंदिर उनकी इबादत का केंद्र थे।
- सुर की महत्ता: बिस्मिल्ला खाँ के लिए सुर सबसे महत्वपूर्ण था। वे केवल सुर के लिए खुदा से प्रार्थना करते थे।
- सांस्कृतिक समन्वय: वे हिंदू-मुस्लिम एकता (गंगा-जमुनी तहज़ीब) के प्रतीक थे। उनके लिए इबादत और संगीत एक थे।
- मुहर्रम: शोक की अवधि के रूप में महत्वपूर्ण ।
ख. शब्द निधि (Glossary):
- इयोढ़ी: देहलीज़ [151]।
- नौबतखाना: प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने का स्थान।
- रियाज़: अभ्यास।
- सुर: ध्वनि, प्रभाव, असर।
- सजदा: माथा टेकना ।
- इबादत: उपासना।
- जिजीविषा: जीने की इच्छा।
- तहजीब: संस्कृति, सभ्यता।
पाठ 11: शिक्षा और संस्कृति
संक्षेपण (Summary)
यह निबंध महात्मा गाँधी के शिक्षा और संस्कृति संबंधी विचारों पर आधारित है । गाँधी जी के अनुसार, अहिंसक प्रतिरोध सबसे उदात्त और बढ़िया शिक्षा है। शिक्षा का अर्थ केवल बुद्धि का विकास नहीं, बल्कि मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास है। गाँधी जी बच्चों की शिक्षा का प्रारंभ इस तरह करना चाहते थे कि उन्हें कोई हस्तकला (दस्तकारी) सिखाई जाए, जिससे वे उत्पादन करने का काम सीख लें। वे शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक शक्तियों का समन्वय चाहते थे। वे मानते थे कि केवल साक्षरता शिक्षा का अंत नहीं, बल्कि साधन मात्र है। गाँधी जी एक ऐसी सामाजिक क्रांति की कल्पना करते हैं जहाँ बुद्धिजीवी और कारीगर एक दूसरे के साथ तालमेल रखें। वे विदेशी भाषाओं (अंग्रेजी) के अध्ययन को उपयोगी मानते हैं, लेकिन अपनी मातृभाषा और संस्कृति के सम्मान को प्राथमिकता देते हैं। उनकी दृष्टि में संस्कृति कई संस्कृतियों के मिश्रण से बनती है, और उसका उद्देश्य कृत्रिम एकता नहीं, बल्कि अविभाज्य और विशुद्ध एकता की ओर ले जाना है ।
अध्याय में निहित प्रश्नों के समाधान (शिक्षा और संस्कृति)
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