दशहरा का सफर और मां दुर्गा की तस्वीर
हमारी मां दुर्गा की सुन्दरता का कोई वर्णन नहीं किया जा सकता। मां दुर्गा अपने भक्तों को उनके जीवन के संकटों कों उबारती हैं। हम सब मां अम्बें के पुत्र समान हैं। मां हमें अपना पुत्र समझकर हमारी हर इच्छा को पुरा करती है। मां दुर्गा ने ना केवल हमें महिषासुर के आतंक से मुक्त कराया है बल्कि हमारी मां हमेंशा हम सब के बीच विद्यमान रहकर हमारी मनोकमनाओं को पुरा करती हैं।
हमारी मां दुर्गा के अनेक रूप हैं । मां दुर्गा भगवान शिव की अर्धांगिनी होने के साथ-साथ भगवान शिव की तरह ही गुणों से परि हैं। जिस प्रकार भगवान शिव भोलेनाथ के नाम से भी जाने जाते हैं। ठीक उसी
तरह मां अम्बें भी करूणा के सागर हैं। जो भक्त इन्हें सच्ची श्रधा से अपनी मां मान लेता है। नित्य उनका ध्यान करता है। मां उसे अपना पुत्र बनाकर उसकी जीवन को सुखी बनाने के लिए अपनी कृपा उसपर लुटा देती हैं।
दशहरा एक वह दीन है जिस दिन हमलोग मां जगदंबे यानि मां दुर्गा ने सत्य और धर्म की रक्षा करने के लिए मायावी दानवों से युद्ध किया और सत्य के साथ-साथ अपने भक्तों की रक्षा भी की।
मां दुर्गा को कई नामों से जाना जाता है। महाशक्ति मां दुर्गा ने महिषासुर नामक दानव का वध किया।
गौरी मां जगदंबे की ही एक रूप मां काली हैं । इनका यह रूप ठीक उसी तरह प्रलय का संकेत देती है । जैसे जब महादेव भगवान शिव अपने तीसरे नेत्र खोल टांडब करने लगते हैं।
आदि शक्ति मां भवानी सब पर अपनी कृपा लुटानी चाहती हैं। उन्होंनें महिषासुर दानव को भी क्षमा करना चाहती थी। परंतु महिषासुर तैयार नहीं हुआ। वह इस जगत पर राज करना चाहता था।
वह सब से अपनी पुजा करबाना चाहता था और अपने को सबका भगवान समझता था।
जब कोई उसका पुजा करने से इंकार कर देता था या उसकी बात से सहमत नहीं होता था तब वह दानव उनपर शस्त्र का प्रयोग कर अत्याचार करता था और उनका वध भी कर देता था।
इस दानव ने ना केवल मानवों पर बल्कि उन देवताओं पर भी अत्याचार करने लगे जो अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते थे।
दानव को पता था कि मानव की पुकार सुनकर देवता जरूर उन्हें बचाने आऐंगे। इसलिए उसने देवताओं को भी सताना शुरू कर दिया।
उसने देवलोक पर हमला कर दिया और फिर देवताओं पर अत्याचार करनें लगा।
देवगन अपनी शक्तियों का प्रयोग कर उसे परास्त नहीं कर सके क्योंकि दानव ने घोर तपश्या करके परम पिता ब्रह्म जी से अनेक बर प्राप्त कर चुका था।
सभी देवता दानव के किए जा रहे अत्याचार से पीड़ित हो रहे थे। देवताओं के राजा इंद्र भी इस दानव से मानवों की रक्षा नहीं कर पाए रहे थे।
अंत में सबने तंग आकर भगवान शिव से अपनी और मानवों की रक्षा के लिए दया मांगी।
भगवान शिव ने सबकी दया पुकार की लाज रखी उन्होंनें वचन दिया की वे सबको इस दानव के अत्याचार से मुक्त कराएंगे।
अंततः भगवान शिव ने महा प्रचंड विनाशक रूप पंचमुख को धारण किया। भगवान शिव का यह रूप देखा सभी दिशाऐं डोल गई। इस रूप को देख देवताओं की भी सासें थम गई।
प्रचंड विनाशक उस रूप में आकर भगवान शिव ने अपनी हृदय से मां भवानी को उत्पन्न किया। उस वक्त मां जगदंबे को सभी देवी देवता उनके सामने शीश झुकाकर अपने कष्टों की व्याख्या दी । मां जंगदंबे ने सबकी पुकार सुनी और अपने शरण में आय देवी देवताओं को उन कष्टों का निवारण करने के लिए गगन में उङ चली।
मां जगदंबे की शक्ती के प्रभाव से पुरा ब्रह्मांड प्रभावित हुआ। दानव ऐसा देखते ही अपने सेनाओं को भेजकर पता लगाने को कहा। जब सैनिक को पता चला तो वह अपनी मायावी शक्ति का प्रयोग कर मां दुर्गा से युद्ध करने लगा। मां भवानी ने सभी सैनिको का बध कर दिया। बारी-बारी सभी प्रमुख दानव सैनिक भी मारे गए और अंत में
महिषासुर आया। महिषासुर ने मां जगदंबे पर नीच दृष्टिकोण डालने की चेस्टा की परंतु दानव प्रवृति को समझकर मां नें उसे सावधान किया।
मां ने कहा कि अगर तुम अपनी अत्याचार को छोड़कर। अपनी गलती के लिए क्षमा मांगकर हमारे में आ जाओ,हम तुम्हें क्षमा कर देगें।
लेकिन वह नहीं माना और मां के साथ युद्ध करने लगा। वह अनेक भयानक भुत,प्रेत,राक्षस और जानवर का रूप बदल-बदल कर युद्ध करता है। आदि शक्ती मां भवानी भगवान शिव का ध्यान करती हैं
और अपने को भगवान शिव की शक्ती के साथ जोड़कर एकीकृत कर लेती हैं। महाशक्ति मां भवानी ने राक्षस महिषासुर का बध कर डाला।
इस युद्ध के दौरान मां जगदंबे के मन में राक्षसों के प्रति ज्वालामुखी भङक रही थी। मां ने सभी राक्षसों का एक-एक करके बध कर दिया।
मां महाशक्ति ने महाकाली का रूप धारण कर लिया और क्रोध से फटती ज्वाला के समान टांडब करने लगी।
मां जगदंबे के क्रोध भरे रुप को शांत कराने की हिम्मत किसी देवी देबता मे नहीं हुई।
अंत में सबने भगवान शिव से प्रार्थना किया की वे मां का क्रोध शांत करें।
भगवान शिव ने सब पर दया की और उन्होंनें मां भवानी के रूप महाकाली का क्रोध शांत करने के लिए उन्होंनें एक लीला रची।
मां महाकाली धरती पर टांडब नृत्य कर रहीं थीं। उसी समय भगवान शिव मां काली के पैर के नीचे आकर लेट गए।
मां काली क्रोध में नृत्य कर रही थीं जिसके वजह से उन्होंनें नीचे ध्यान नहीं दिया और मां दाहिना पैर भगवान शिव के सीने पर पङा।
मां जगदंबे का ध्यान नीचे पङा उन्होंने देखा की उनका पैर त्रिभुवन भगवान शिव के उपर पङा है,तब भौचक्के के कारण मां काली का जीभ बाहर आ जाता है।
मां जगदंबे को जरा भी ऐहसास नहीं था कि कभी भगवान महादेव ऐसे कहीं भू पर लेट जाऐंगे।
मां भवानी का क्रोध तुरंत शांत हो गया। मां जगदंबे से अनचाहे में बहोत बङा पाप हो गया। मां भवानी ने भगवान शिव क्षमा मांगा।
भगवान शिव ने मां भवानी को उनके द्वारा मानवों की रक्षा करने और देवताओं को दानव आतंक से मुक्त कराने की प्रसंसा की।
भगवान शिव ने कहा यह कोई पाप नहीं। हमारी लीला है। हम-तुम दो नहीं ब्लकि एक ही अंग के दो रूप हैं।

इस प्रकार मां जगदंबे ने देवताओं और मानवों की रक्षा के लिए युद्ध किया और सभी राक्षसों का बध कर सबको राक्षसी आतंको से मुक्त कराया।
मां अपने शरणार्थियों को कष्ट देने वाले सभी दैत्य और दानवों का नाश करने के बाद भी शांत नहीं हुई।
भगवान शिव ने लीला रची और मां का क्रोध शांत किया।
सभी देवता दानवों के अत्याचार से मुक्त हो गए। मां भवानी का क्रोध शांत हो गया। भगवान शिव ने मां भवानी को बताया कि उनसे कोई पाप नहीं हुआ है यह हमरी लीला का हिस्सा है।
सभी देवी देवता भगवान शिव के और मां भवानी के इस दया कृपा के लिए उनका आभार व्यक्त किया।
मां काली का वह रूप सर्वत्र जगत में व्याप्त हुआ। मानव, देवी,देवता सभी भगवान शिव और मां भवनी की आरती एवं पूजन करते हैं।
उस दीन के बाद से हम सब मानव जाती हर साल दुर्गा पूजा के दिन को अपने मां की कृपा का ध्यान करते हैं और धर्म की जीत की खूशी मनाते हैं।
मां दुर्गा ममता के सागर हैं वे अपने भक्तों का हमेंशा ख्याल रखती हैं।
सच्चे मन और श्रद्धा से अपने आप को मां के चरणों में समर्पित करता है मां उसे अपना प्यार अवश्य देती हैं।
मां सदा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं एवं उसके जीवन को सुंदर और सुखी बनाती हैं।
जो नारी मां का व्रत रखती हैं। मां उसे संतान सुख, पति प्रेम सुख आदि का बरदान देतीं हैं।
जो मां भवानी के महाकाली रूप का ध्यान करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। मां उसके जीवन के सभी दुखों और संकटों को हर लेती हैं।
मां भवानी और भगवान शिव का जो एक साथ ध्यान लगाकर पुजा करते हैं और बालिक कन्याओं को भोजन करते हैं उनके घर में अन्न, धन, सुख और शांति हमेंशा बनी रहती है।
मां का ध्यान रखने से मां खुश होती हैं और हमें जीवन के भव सागर से पार ले जाती हैं। तो एक बार जोर से बोलें: अष्टभुजा मां भवानी की..जै...।
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