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Class 12 hindi bihar board digant all chapters Summary, Q&A solution and notes

Class 12 hindi bihar board "दिगंत" all chapters Summary, Q&A solution and notes  हम अपने वेबसाइट पर आने वाले हर पाठकों और विद्यार्थियों को इस बात का आश्वासन देते हैं कि आपको इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 12 के हिंदी विषय जिसे दिगंत के नाम से जाना जाता है। सभी प्रश्नों के समाधान अर्थात पुस्तक में निहित सभी अध्यायों के सभी प्रश्न के समाधान। अध्यायों का संक्षेपण और नोट्स प्रदान किए जाएंगे। कक्षा 12 हिन्दी (बिहार बोर्ड) गद्य खंड के व्यवस्थित नोट्स यह पोस्ट डिवाइस स्क्रीन के बाएं किनारे से लेकर दाएं किनारे तक विस्तृत है और पढ़ने को आसान बनाने के लिए इंटरैक्टिव (Accordion) है। जानकारी देखने के लिए शीर्षक पर क्लिक करें। अध्याय 1: बातचीत (निबंध) - बालकृष्ण भट्ट I. संक्षेपण (Summary) दिए गए अध्याय का संक्षेपण (Summary of the Chapter) प्रस्तुत अध्याय 'बातचीत' बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित एक निबंध है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उन्हें हिंदी गद्य साहित्य में अंग्रेजी के निबंधकार **एडिसन और स्टील** की श...

hindi poem: Ncert bihar board class 2 badal bhaiya

क्या आपको नहीं लगता की आप कुछ भूलते चले जा रहे हैं: बादल भैया बहुत हूआ किचङ-किचङ पानी-पानी...

क्या आपको नहीं लगता है कि आप कुछ भूलते जा रहे हैं क्या नहीं लगता कि आपको उन्हें फिर से याद करना चाहिए। दिल जीत लेने वाली कविताएं, मन रम लेने वाली कविताएं, अमृत जैसी धारा और मन को पवित्र करने वाले कविताएं जो हम अपने बचपन में पढ़ा करते थे। आज वह दिन याद आती है तो आंखों में आंसू आ जाते हैं। क्या आपको भी अपने अंतरात्मा से बहुत अजीब सा अनुभव होता है। क्या आपको नहीं लगता कि हमें ऐसी चीजों को नहीं भूलना चाहिए। जिन्होंने हमारे अपने जीवन को सुख, सुविधा और आनंदमय बनाया हो। अपने मन की गहराई तक पहुंचने वाले, दूसरों के मनोभावनाओं तक पहुंचने में कामयाब हो पाते हैं। हम एक दूसरे को समझ पाते हैं, परख पाते हैं और उनसे जुड़ पाते हैं।
कितनी अजीब है यह जिंदगी कोई एक समय था। जब हम भी बहुत से छोटे-छोटे बच्चों के साथ बैठकर पढ़ा करते थे। टीचर हमें कविता याद करने के लिए कहा करते थे और रीडिंग डलवाया करते थे। जब कुछ लाइन याद हो जाती थी और कभी जब बारिश हुआ करते थे और हम लोग विद्यालय जाया करते थे, तो रास्ते में हम अपने दोस्तों के साथ गया करते थे। बादल भैया बहुत हुआ कीचड़ कीचड़ पानी पानी... क्या आप यह सब भूल गए हैं? कितनी मस्ती थी उस जिंदगी में। कैसा लगता है जब आज हम इसे याद करते हैं और उन तस्वीरों को देखते हैं जिन तस्वीरों को हमारे तेज नेत्रों ने देखा था और आज वह तस्वीर हमें धुंधली सी दिखाई देती है। आंखों में तब आंसू आते हैं  तस्वीर और भी धुंधली हो जाती है ऐसा लगता है मानो मन किसी दूसरी दुनिया में चला गया हो। ऐसा लगता है जैसे हम पुस्तक खोल कर बैठे हैं और उस पर शाम की लालिमा पढ़ने लगी है और वह धीरे-धीरे अंधकार में बदलता जा रहा है। जब ये सरकारी स्कूल की किताबें हमें अपने गांव में फटे पुराने कुछ पन्नों के रूप में मिला करती थी, हम एक-एक पन्ना को जोड़कर कविता को पूरा करने की कोशिश किया करते थे। उस समय हमें स्पष्ट थी की कविता अधूरी रह गई है। लेकिन आज ऐसा लगता है कि मानों पूरी जिंदगी ही अधूरी रह गई है। परंतु यह स्पष्ट नहीं है। सब कुछ धुंधला सा हो गया है। क्योंकि हम सब भूलते जा रहे हैं। सोचता हूं कि शायद पुरानी चीजों को देखने से वह सब याद आ जाए। पर जब सोचता हूं तब आंखों में आंसू आते हैं परंतु इन आंसुओं में भी अजीब सी खुशी मिलती है। अजीब सा अनुभव होता है अकेलापन, खामोशी और फिर धुंधलापन।


क्या आपको यह कविता आज भी याद है क्या आप इसे समझने का भी प्रयास करते थे। बादल भैया बहुत हुआ, कीचड़ कीचड़ पानी पानी, याद सभी को आई नानी, सारा घर दिन-रात चला, बादल भैया बहुत-बहुत हूआ। शहर के बच्चों को क्या पता। हम लोग गांव में रहकर बड़े हुए हैं। हमसे पूछो कैसा अनुभव होता है इस कल्पना को करके। कितना अजीब लगता है चारों तरफ हरे-भरे पेड़-पौधे , बारिश हो रही है, घने काले बादल छाए हुए हैं। सारे बच्चों के साथ शोर कर रहे हैं और स्कूल की ओर दौड़ लगा रहे हैं। बिना छतरी के हैं। कोई पेड़ का बड़ा पत्ता मिल जाता है, तो उसे सर पर रखकर दौड़ने लगते हैं। अपने दोस्तों को कहने लगते हैं कि तुम भी एक पत्ता ले लो वहां पर पड़ा है और अपने सर पर रख लो पानी से नहीं भिगोगे। अपने सर पर पता रखकर सर को बचाकर खुशियां मनाते थे। बाकी सब कुछ भीग जाता था। पर बहुत खुशी मिलती थी उस समय की जिंदगी में। गांव में सड़क नहीं हुआ करते थे। गलियां होती थी जो की मिट्टी की बनी होती थी। जब पानी पड़ता था तो आधे घुटने भर जाता था। भले ही वह बड़ों को काम करने में तकलीफ पहुंचाते थे परंतु हम बच्चे उसमें डुबकियां मार-मार कर खुशियां मनाते थे। मुझे याद है कि जब हम अपने मिट्टी के बने घर से बाहर देखा करते थे। बांस के फठे के दरवाजे लगे हुए थे। घर के आंगन को चारों ओर से घेरा हुआ था और बीच आंगन में कई सारे पेड़-पौधे लगे हुए थे जैसे कि अमरूद के, आम के। जब तेज हवा और तेज बारिश होती थी और काली-काली बादल से, दिन में भी अंधेरा सा हो जाता था वैसे समय में बाहर का नजारा देखने योग्य होता था। दो मुठी चावल या गेहूं का भुंजा मिल जाने पर उसे बचा-बचा कर खाते थे और बाहर हो रहे बरसात को देखते थे । कभी-कभी दरवाजे से बाहर हाथ निकाल कर छत के कोरी से चू रहे पानी को भी हाथों पर लिया करते थे। उस समय घरों के ऊपर छत नहीं हुआ करता था, बल्कि उसके छप्पर हुआ करते थे और उसके ऊपर खपड़े जो की मिट्टी के बने होते थे उन्हें सजाया जाता था। कुछ खपड़े टूट जाने के कारण या चिड़ियों द्वारा उलट पलट कर दिया जाने के कारण बरसात के दिनों में पानी घर में भी चुने लगता था फिर बरसात रुकने के बाद उसे ठीक करना होता था। तब तक घर में जो पानी चुते थे उसे कटोरे में छनना पड़ता था और फेकना पड़ता था। अपनी छत से टप टप टप गिरती थी और उसे कटोरे में छाना करते थे और एकत्र होने के बाद उसे फेका करते थे। जब स्कूल जाते थे तो पानी पङने के कारण सारा रास्ता कीचड़ कीचड़ हो जाता था। क्योंकि वहां सड़के नहीं होते थे। वहां खेत का किनारा होता था। दो खेतों के बीच मिलाप जहां होती थी, वहां थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठा हुआ चौखट की तरह क्यारी होती थी। इस पर चलकर ही आना जाना होता था। गर्मी के दिनों मे तो इस पर चलने में मजा ही आ जाता था। क्योंकि यह साफ टाइट और दोनों तरफ खेत हरे-भरे फूल पौधों से भरे रहते थे और बीच से चलकर जाना बहुत ही सुंदर लगता था। हम उस समय कुछ पौधों से भी छोटे पड़ जाते थे। सरसों की खेती के दिनों मे सरसों के फूल तो हमारे सर से भी ऊपर खिला करते थे, जिन्हें हम हाथ उठाकर तोड़ कर भागा करते थे। जब भी स्कूल जाते थे एक न एक फूल जरूर तोड़ लेते थे पीले पीले फूलों से मन लुभा जाता था।
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