नालंदा विश्वविद्यालय की सैर करना
लगभग छह-सात साल हो गए, जब मै पटना में एक सरकारी स्कूल में पढ़ता था..उत्क्रमित मध्य विद्यालय..एक दिन क्लास में हमलोग बैठे पढ़ाई कर रहे थे कि तभी "हिस्ट्री" पढाने वाली मैडम क्लास में आइं। उन्होंने कहा किताब निकालकर अगला लेशन निकालो..। हम सब ने किताब निकाला और और अगला लेशन निकाला उसमें लालंदा विश्वविद्यालय का जिक्र था। मैडम का नाम अंशु था। वह हिस्ट्री बहोत अच्छे से पढ़ाती थी। उन्होंन बताया कि नालंदा विश्वविद्यालय प्राचिन विश्वविद्यालयों में से एक है और यह राजगीर में हैं। इसे पांचवी शताब्दी में गुप्त वंश के शाशक कुमारगुप्त प्रथम ने बनवया था। यह बौद्ध शिक्षा, शरीर रचना विज्ञान , खगोलशास्त्र, रसायन शास्त्र और दर्शनशास्त्र जैसे ज्ञान का एक बहुत प्रसिद्ध केंद्र था। यह तिब्बत,मंगोलिया, टर्की और कोरिया में रहने वाले कई विद्वानों को यह आकर्षित करता था। यही नहीं कई अन्य देशों में रहने वाले लोगों के आकर्षण का केंद्र था। सभी यहां के मिलने बाले ज्ञान से प्रभावित हुआ करते थे। उन्होंने बताया कि यहां विश्वविद्यालय में प्रवेश हेतु कठिन परीक्षा ली जाती थी। यहां लगभग दस हजार से भी ज्यादा छात्र अध्ययन किया करते थे एवं लगभग दो हजार शिक्षकों की मंडली थी। उन्होंने और भी कुछ बताया । लेशन पूरा होने के बाद राजू ने पूछा मैम नालंदा यहां से कितना दूर है?..बच्चों आप अभी जहां हो वहां से लगभग 130 किलोमीटर की दूरी होगी। उन्होंने पूछा कि क्या सब भी नालंदा विश्वविद्यालय देखना चाहेंगे। सभी बच्चों ने एक स्वर में जवाब दिया हां...। मैडम ने कहा ठीक है तो हम प्रिंसिपल सर से बात करते हैं। इसका होमवर्क कर लेना..,कहकर चली गई। थोङी देर में ही क्लास में प्रिंसिपल सर आऐ...गुड माॅर्निंग सर...गुड माॅर्निंग..2.., सब बैठ जाइए । मैडम ने बताया कि आप सब कहीं घुमने जाना चाहते हैं..कहां?..नालंदा विश्वविद्यालय..सभी बच्चे एक साथ जोर से बोले। प्रिंसिपल सर का नाम "सजन" था, हम सब सजन सर कहा करते थे। उन्होंने पूछा आप वहाँ क्यूं जाना चाहते हैं?..उसे देखने के लिए। सेल्फी भी लेंगे..गुलशन ने कहा। सर ने कहा कोई फोन नहीं ले जायेंगे। फोन केवल शिक्षकों के पास होगी..फोटो उन्हीं से लेना होगा। साथ ही केवल उन्हीं बच्चों को ले जाया जाएगा,जिनहें घर से अनुमति मिलेगी। सभी बच्चे अप्लिकेशन लिखकर उसपर अपने गार्जियन का सिग्नेचर करवाए और एक साथ इकट्ठा कर ऑफिस में जमां कर देंगे। ध्यान रखिए कि सभी बच्चे अपनी ज़रूरत का सामान ले लेंगे। जैसे- पानी बाॅटल, बैग, नास्ता यदि संभव हो तो । उल्टी की दवा भी ले लेना। जसको उल्टी आती है वो बस में खुली खिङकी के पास बैठेंगे। यह भी ध्यान रखें की कोई बच्चा नाॅरमल कपङे पहनकर नहीं आऐंगे सब स्कूल ड्रेस पहन कर ही आऐंगे...,आईकार्ड पहनकर जरुर आना।सभी बच्चे कल सुबह छः बजे तक स्कूल आ जायेंगे बस यहीं से खुलेगी।
दूसरे दिन सभी बच्चे एप्लीकेशन के साथ अपने जरूरत का सामान, स्कूल ड्रेस में, आई कार्ड पहनकर स्कूल पर उपस्थित होते हैं। स्कूल के बाहर ही हरे रंग की बस लगी हहुई है। बस के आगे बजरंगबली की तस्वीर लगी हुई है, बस बिल्कुल नइ लग रही है। हम सब ने एप्लीकेशन ऑफिस में जाकर जमा कर दिया। मैडम ने एक बार सबसे पूछा क्या सारे बच्चे आ गए हैं?.. सभी ने एक-एक करके सबको गिरना शुरू किया जाने के लिए कुल 21 बच्चे तैयार थे जिसमें 9 लङके थे बाकी सब लड़कियां थी। सभी मौजूद थे। मैडम ने सबको बस पर चढ़कर बैठने को कहा। सभी बच्चे भगवान का नाम लेकर बस पर चढ़ने लगे और अपने-अपने सीट पर बैठने लगे। हम पांच दोस्त आकाश, विशाल, साहिल, पृथ्वी और हम सबसे पीछे वाले सीट पर बैठे थे। क्योंकि हम लोग हमेशा साथ में रहा करते थे और पीछे वाली सीट उसके लिए उपयुक्त थी। हम लोग क्लास में भी सबसे आगे वाली बेंच पर साथ में ही बैठा करते थे। सभी शिक्षक बस में आगे कुछ सीटों पर बैठे थे, बस लंबी थी। बस ड्राइवर ने कहा सभी अच्छे से बैठ गए हैं?..हां..सब ने एक साथ कहा। फिर सब ने जोर से गणपति भगवान की जै बोला और फिर ड्राइवर ने बस स्टार्ट कर दी । जब हम लोग विद्यालय से निकल रहे थे तब काफी ठंड थी। क्योंकि ठंड का मौसम था इसलिए 6:00 बजे भी थोड़ा अंधेरा सा ही लग रहा था। क्योंकि कुहासे थे। कुछ बच्चे स्वेटर पहन कर आए थे। हालांकि कुछ बच्चे केवल ड्रेस पहन कर आए थे, इस वजह से क्योंकि दोपहर में धूप हो जाने के बाद उन्हें गर्मी लगने लगेगी। बस चलने लगी कुछ घंटे चले उसके बाद गाङी एक खाली स्थान पर रुक गया । सर ने कहा सब लोग हाथ धोकर यहां नास्ता कर लो। हम सब ने वैसा ही किया बहोत मजा आया। हमने अपने घर से पुङी सब्जी मां से बनबा लिए थे। हम और हमारे दोस्तों ने अपने-अपने घर से लाये नास्तों को एक जगह पर रखा। आकाश आवले का आचार भी लाया था मुझे बहोत अच्छा लगा..मैनें दो खाये..उन्होंने भी हमारे घर के पुरी सब्जी को खाया और गुण गाए। उसके बाद हम सब कुछ दूर पैदल चले ,गाङी वहीं लगी रही। हमलोग नालंदा विश्वविद्यालय के द्वार तक पहुंच गए। द्वार पर दो लोग थे, मैडम ने उनसे कुछ बात की और फिर हम सब को लाइन से अंदर जाने को कहा । हम सब लाइन से बारी-बारी करके मुख्य द्वार के अंदर आ गए। मैडम ने एक आदमी को सामने लाया और कहा..ये हमारे गाइड हैं हम सब इन्हीं के दिशा निर्देशों का पालन करेंगे । ये हमारे साथ चलेंगे और हमें यहां के बारे में बताएंगे। उसके बाद हम सब उनके पीछे-पीछे चलने लगे। गाइड ने हमलोगों को बहोत कुछ बताया। उन्होंने बताया कि जो उंचा भाग दिखाई दे रहा है उसमे कई गुप्त वंश की समाधि है और भी बहुत कुछ बताया पर अब बहोत दिन हो गए। वहां हमलोग पहली बार गये थे इसलिए वहां की हर चीज को देखना चाहते थे। इसलिए गाइड की बातों पर उतना ध्यान नहीं सके । मेरा दोस्त शाहिल बार-बार नयी जगहों की ओर देखने का संकेत करता जिसके वजह से और ध्यान भटक रहा था। गाइड ने बताया की ये जो आप देख रहे हैं नीचे, ये सभी खुदाई में निकले हैं। वहां एक प्राचीन कुआँ भी है। वहां कुछ बौद्ध भिक्षुओं की मंडली भी एक जगह पर बैठकर कुछ कर रहे थे। इसके बाद हमारे शिक्षकों ने कहा की अब हम यहां से चलेंगे। यह सुनकर सब दुखी हुए परंतु मैडम ने बताया की नालंदा के बाद राजगीर और बोधगया की भी सैर करेंगे। यह सुनकर सभी फिर से खुश हो गए। नालंदा में हमलोगों ने बहुत कुछ देखा और जाना, लेकिन फिर भी बहुत कुछ देखना बाकी भी रह गई। वहां दृश्य बहुत सुन्दर है। सब के साथ खाने-पीने और घुमने में बङा मजा आया। सभी दार्शनिक स्थलों घुमकर घर लौटते-लौटते राता हो गई थी। हम दोस्तों ने पैसे मिलाकर एक टोपी भी खरीदा था विदेशी टोपी थी । बारी-बारी सबने पहनी। आज इस सफर के छह-सात साल हो गए। किसी दोस्तों से अब मिलना-जुलना नहीं होता। कुछ ही कुंवारे होगें बाकी सब शादी-शुदा हो गए। बीच में लगभग तीन साल पहले अपने स्कूल में अपने गुरूजनों से मिलने गया था। कुछ टीचर नहीं आयें थे। और हम कुछ दोस्त ही इक्का हो पाए थे बाकी सब व्यस्त हो चुके थे। मै भी काॅलेज जा रहा था तो सोचा मिलता चलूं । उसी रास्ते से जाता था। उस दिन की ही बस एक तस्वीर बची हुई है।
नालंदा सैर की भी तस्वीर थी, लेकिन फोन में थी । फोन के साथ तस्वीर भी चली गई।
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